एकांत का दीपक जलता रहा और मेरे मन के तालाब में शब्दों के दिए झिलमिलाते रहे . मै इन दियो की झिलमिलाहट की मंद रोशिनी में जीवन के रास्तो की पहचान करता रहा . हर बढ़ते कदम के साथ मंजिल पाने की उम्मीद परवान चद्ती गयी और मै बढ़ता रहा की पता नहीं किस मोड़ पे मुझे अपनी मंजिल का आशियाना मिल जाये.